अधरों का आलिंगन
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कैसे बताऊ तुम्हे मैं
उसके अधरों के
आलिंगन की बात
कितना सुन्दर था
वह अहसास
दूर थे दुनिया की भीड़ से
दहक रहे थे हमारे जज्बात
उसके अधरों में थी
झील के पानी सी शीतलता
छुआ जैसे ही
उसके अधरों ने मेर अधरों को
मिट गयी मेरे अधरों की
जलती आग
अदभुत था वह
आलिंगन अधरों का
जिसने बाँध लिया मुझे
अपने मोहपाश
लरज रहे थे काँप रहे थे
जब तक हुआ नही
मिलन अधरों का
जैसे ही हुआ स्पर्श
सिमट आई बाहों में
सारी कायनात
भूल गये हम
प्यार की सारी बाते
लब से लब कर रहे थे
अपनी ही बात
ये अहसास ये जज्बात
भुलाए नही भूल सकते
ये अधरों का आलिंगन
रहेगी जबतक अंतिम साँस ।
जीतेन्द्र सिंह "नील"
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